kanchan singla

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सूखा ठूंठ...!!

हरे भरे पेड़ों के बीच

अकेला खड़ा वो ठूंठ 
निरस्त सा जीवन लिए
एकरस्ता का पान किए
दर्द बांटने को कोई नहीं
पत्तियों का भी साथ नहीं
आस पास फैली कितनी हरियाली है
वो जीवन के दुखों को ढोता स्वयं का साथी है
आज कोई उसके नीचे विश्राम को भी नहीं बैठता
सुखी पड़ी टहनियों में अब वो छांव बाकी जो नहीं है
कल तक था वह भी हरा भरा
सबसे हमेशा घिरा घिरा
फल फूल पत्तियों से लदा पड़ा 
वक्त बदला खुशियों के दिन ढल गए
पत्ती पत्ती साथ छोड़ हर शाखा से झड़ गई
निढ़ाल सा वह अकेला रह गया खड़ा
अब ना आते फूल उसपे ना ही फलों की भरमार होती
हर टहनी अब ठूंठ बने वृक्ष का भार ढोती
परिंदें भी बसेरा ना बनाते
चहचाहट का शोर अब ना उसे सुनाई देता
जीवन कठोर था उसका
आस पास बिखरे रंग देख कर भी
स्वयं में उनको ना भर पाता था
अब बुढ़ापा आ चला था 
वह खुद को लाचार पाता था
फिर इक दिन आया
उस सूखे ठूंठ को किसी ने काट लिया
हर टहनी को अलग किया 
गट्ठर में बांध लिया
अब उस वृक्ष को अहसास हुआ
वह मर कर भी नाकाम नहीं है
जीवन वही जो मरते हुए भी
किसी के काम का है।

अब उस वृक्ष का हर टुकड़ा कहीं कहीं
कोनों में सजा हुआ दिखता है।
वृक्ष की आत्मा चली गई
शरीर आज भी सजा दिखता है।

वह मर कर भी औरों के काम आया
वह मानव नहीं वृक्ष था
उसने हमेशा त्याग ही सिखाया था।। 

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4 Comments

Haaya meer

09-May-2023 06:46 PM

बहुत दिनों बाद 👍👌

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kanchan singla

09-May-2023 10:28 PM

@haayameer कभी कभी जिंदगी में उलझ जाते हैं और कविताएं एकांत के साथ सुकून मांगती हैं। बहुत दिनों बाद लिखने का वक्त मिला बस थोड़ा सा लिख दिया। शुक्रिया याद रखने के लिए ☺️

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Renu

09-May-2023 06:34 PM

👍👍

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Varsha_Upadhyay

09-May-2023 07:06 AM

बहुत खूब

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